पौधशाला प्रबंधन

     

फव्वारा सिंचाई द्वारा उगाई प्याज की पौधशाला                टपक सिंचाई के द्वारा उगाई प्याज की पौधशाला

 

ऊचित पौधशाला प्रबंधन और रोपाई का प्याज की फसल में महत्वपूर्ण योगदान है। लगभग 0.05 हेक्टेयर क्षेत्र की पौधशाला 1 हेक्टेयर में रोपाई हेतु पर्याप्त है। इसके लिए खेत की 5-6 बार जुताई करना चाहिए जिससे ढ़ेले टूट जाए और मिट्टी भूरभूरी होकर अच्छी तरह से पानी धारण कर सके। भूमि की तैयारी से पहले पिछली फसल के बचे हुए भाग, खरपतवार और पत्थर हटा देने चाहिए। आखिरी जुताई के समय आधा टन अच्छी तरह से सड़ी हुइ गोबर की खाद 0.05 हेक्टेयर में मिट्टी के साथ अच्छी तरह से मिलाना चाहिए। पौधशाला के लिए 10-15 सें.मी. ऊंचाई, 1मी. चौड़ाई और सुविधा के अनुसार लंबाई की उठी हुई क्यारियां तैयार की जानी चाहिए। क्यारियों के बीच की दूरी कम से कम 30 सेमी होनी चाहिए, जिससे एक समान पानी का बहाव हो सके और अतिरिक्त पानी की निकासी भी संभव हो। उठी हुई क्यारियों की पौधशाला के लिए सिफारिश की गई है, क्योंकि समतल क्यारियों में ज्यादा पानी की वजह से बीज बह जाने का खतरा रहता है। पौधशाला में खरपतवार नियंत्रित करने के लिए 0.2% पेंडीमिथालिन के इस्तेमाल की सिफारिश की गई है। लगभग 5-7 कि.ग्रा. बीज एक हेक्टेयर में पौध के लिए आवश्यक है। बुवाई से पहले 2 ग्रा./कि.ग्रा. बीज के दर से थिरम का उपयोग आर्द्र गलन (डैपिंग ऑफ) रोग से बचने में सहायता करता है। ट्रायकोडरमा विरीडी (1,250 ग्रा./हे.) का उपयोग आर्द्र गलन से बचने एवं स्वस्थ पौध प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। बीज 50 मि.मी. से 75 मि.मी. पर कतार में बोया जाना चाहिए जिससे बीज बुवाई के बाद रोपाई, निराई और कीटनाशकों का छिड़काव आसानी से हो सके। बुवाई के बाद बीज को सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट से ढका जाना चाहिए और फिर हल्के पानी का छिड़काव करना चाहिए। टपक या सुक्ष्म फव्वारा प्रणाली के माध्यम से सिंचाई करने पर पानी की बचत होती है । पौधशाला में 0.2% की दर से मेटालेक्सिल के पर्णीय छिड़काव का मृदा जनित रोगों को नियंत्रित करने के लिए सिफारिश की गई है। कीड़ों का प्रकोप अधिक होने पर 0.1% फिप्रोनील का पत्तों पर छिड़काव करना चाहिए। प्याज के पौध खरीफ में 35-40 दिनों में और पछेती खरीफ एवं रबी में 45-50 दिनों में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं।