नवम्बर 2024 के महीने की सलाह

अ. खरीफ प्याज फसल की निकासी के लिए

  • खरीफ प्याज फसल की निकासी प्रजाति के अनुसार रोपाई के 100-110 दिनों के पश्चात करनी चाहिए। निकासी से दो-तीन दिन पहले गर्दन गिरावट को प्रेरित करने के लिए पौधों के ऊपर से खाली ड्रम घुमाना चाहिए।
  • निकासी किए कंदों को तीन दिनों के लिए खेतों में सूखने के लिए छोड़ देना चाहिए।
  • तीन दिन खेत में सुखाने के पश्चात 2 - 2.5 से.मी. गर्दन छोड़कर प्याज का ऊपरी हिस्सा काट देना चाहिए तथा उसके बाद 10-12 दिनों के लिए कंदों को छाया में रखना चाहिए, जिससे कि बेहतर भंडारण हो सके।
  • अगर 2-3 दिनों में बारिश की संभावना लगती है, तब रोपाई के 90-100 दिनों बाद की फसल निकासी कर प्याज को बाजार में तुरंत बेच देना चाहिए।

ब. पछेती प्याज की खड़ी फसल के लिए

  • अगर वर्षा के कारण अधिक पानी खेत में भरा हो, तब उसे निकाल देना चाहिए।
  • रोपाई के 30 दिनों के पश्चात 35 कि.ग्रा./हे नत्रजन दिया जाना चाहिए।
  • रोपाई के 40-60 दिनों के बाद हाथ से निराई करें।
  • रोपाई के 45 दिनों के पश्चात फिर से 35 कि.ग्रा./हे नत्रजन दिया जाना चाहिए।
  • रोपाई के 30, 45 एवं 60 दिन पश्चात पत्तों पर 5 ग्रा./लिटर की मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्वों के मिश्रण के छिड़काव की सिफारिश की गई है।
  • अगर दो-तीन दिन वर्षा होने की संभावना हो, सापेक्षिक आर्द्रता 85% से अधिक हो या बादल छाए हुए हो, किसानों को काला धब्बा रोग के रोकथाम के लिए बेनोमिल का 0.2% की दर से उचित छिड़काव करने की सलाह दी जाती है।
  • बेनोमिल के छिड़काव के 15 दिन बाद मिथोमिल (0.8 मि.ली./लिटर) में मैन्कोज़ेब (2.5 ग्रा./लिटर) मिलाकर छिड़काव करने की सिफारिश की गई है। इससे पर्णीय रोग एवं थ्रिप्स के प्रकोप की रोकथाम में सहायता होगी।

स. रबी प्याज की पौधशाला के लिए

  • बुवाई से 20 दिन बाद हाथ से निराई करने की सिफारिश की गई है।
  • हाथ से निराई करने के पश्चात 2 कि.ग्रा./500 वर्ग मीटर की दर से नत्रजन देना चाहिए।
  • पानी देने के लिए टपक या सूक्ष्म फव्वारा सिंचाई की सिफारिश की गई है।
  • मृदा जनित रोगों के नियंत्रण के लिए मेटालेक्सिल का 0.2% की दर से घोल बनाकर पौध के पास मिट्टी में डालना चाहिए।
  • थ्रिप्स का प्रकोप ज्यादा होने पर फिप्रोनील या प्रोफेनोफॉस का 1 मि.ली./लिटर की दर से पत्तों पर छिड़काव करने की सिफारिश की गई है।
  • पत्तों पर रोगों का प्रकोप दिखाई देने पर मैन्कोज़ेब या ट्राईसायक्लाज़ोल या हेक्साकोनाज़ोल, का 0.1% की दर से पत्तों पर छिड़काव करने की सिफारिश की गई है।

ड. लहसुन की खड़ी फसल के लिए

  • रोपण के 30 दिनों के बाद 25 कि.ग्रा./हे. की दर से नत्रजन दिया जाना चाहिए।
  • रोपण के 45 दिनों के बाद फिर 25 कि.ग्रा./हे. की दर से नत्रजन दिया जाना चाहिए।
  • रोपण के 40-60 दिनों के बाद हाथ से खरपतवार निकालें।
  • रोपण के 30, 45 एवं 60 दिनों के बाद पत्तों पर 5 ग्रा./लिटर मी मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्वों के मिश्रण के छिड़काव की सिफारिश की गई है।
  • कार्बोसल्फान (2 मि.ली./लिटर) के साथ ट्राईसायक्लाज़ोल (1 ग्रा./लिटर) मिलाकर पहला उचित छिड़काव करने की सिफारिश की गई है।
  • पहले छिड़काव के 15 दिन बाद आवश्यकता के अनुसार मिथोमिल (1 मि.ली./लिटर) के साथ मैन्कोज़ेब (1 ग्रा./लिटर) मिलाकर दूसरी बार छिड़काव करने की सिफारिश की गई है।
  • दूसरे छिड़काव के 15 दिन बाद आवश्यकता के अनुसार प्रोफेनोफॉस (1 मि.ली./लिटर) के साथ हेक्साकोनाज़ोल (1 ग्रा./लिटर) मिलाकर तिसरी बार छिड़काव करने की सिफारिश की गई है।

इ. बीज उत्पादन हेतु प्याज की खड़ी फसल के लिए

  • रोपण के 40-60 दिनों के बाद हाथ से खरपतवार निकालें।
  • रोपण के 30 दिनों के बाद नत्रजन 30 कि.ग्रा./हे. की मात्रा में दिया जाना चाहिए।
  • रोपण के 45 दिनों के पश्चात फिर से 30 कि.ग्रा./हे. नत्रजन दिया जाना चाहिए।
  • मिथोमिल (1 मि.ली./लिटर) में ट्राईसायक्लाज़ोल (1 ग्रा./लिटर) मिलाकर पहला उचित छिड़काव करने की सिफारिश की गई है।
  • पहले छिड़काव के 15 दिनों के पश्चात आवश्यकता के अनुसार प्रोफेनोफॉस (1 मि.ली./लिटर) के साथ मैन्कोज़ेब (1 ग्रा./लिटर) मिलाकर दूसरा छिड़काव करने की सिफारिश की गई है।
  • दूसरे छिड़काव के 15 दिनों के पश्चात आवश्यकता के अनुसार कार्बोसल्फान (1 मि.ली./लिटर) में हेक्साकोनाज़ोल (1 ग्रा./लिटर) मिलाकर छिड़काव करने की सिफारिश की गई है।

फ. भंडारित प्याज एवं लहसुन कंदों के लिए

  • भंडारित कंदों की प्रस्फुटन एवं सड़न के लिए नियमित रूप से निगरानी की जानी चाहिए। यदि सड़े या संक्रमित कंद दिखाई दे तो उन्हें तुरंत हटा देना चाहिए। सुनिश्चित करें ‍कि भंडार गृह में हवा का आवागमन उचित है।
  • लगभग 4-5 फीट का ढेर बनाकर प्याज के कंदों को अच्छी तरह से फैलाकर रखना चाहिए।
  • लहसुन के कंदों को पत्तों के साथ हवादार भंडार गृह में लटकाकर अथवा ऊपर की ओर कम होते हुए गोलाकार ढेर बनाकर भंडारित करना चाहिए।

टिप्पणी: कार्बोसल्फान, प्रोफेनोफॉस, फिप्रोनील एवं मिथोमिल का प्रयोग थ्रिप्स द्वारा नुकसान के लक्षण दिखाई देने पर ही करें। मैन्कोज़ेब, हेक्साकोनाज़ोल, प्रोपिकोनाज़ोल एवं ट्राईसायक्लाज़ोल का प्रयोग रोग के लक्षण दिखाई देने पर ही करें।