जनवरी 2025 के महीने की सलाह
वर्तमान में पछेती खरीफ एवं रबी प्याज के कंद, और लहसुन की फसलें तथा प्याज के बीज की फसल खेत में हैं। इस महीने में सुखा स्थिति में थ्रिप्स का प्रकोप बढ़ने की संभावना है। इसलिए, फसल को थ्रिप्स से बचाने के लिए उचित देखभाल जरूरी है। निम्नलिखित प्रबंधन के तरीकों की सिफारिश की गई है।
अ. खड़ी पछेती खरीफ फसल के लिए
1. रोपाई के 45, 60 एवं 75 दिन बाद पत्तों पर 5 ग्रा./ली. की मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्वों के मिश्रण के छिड़काव की सिफारिश की गई है।
2. रोग एवं कीट को नियंत्रण करने के लिए यदि जरूरी हो तब कार्बोसल्फान (2 मि.लि./ली.) तथा ट्राईसायक्लोज़ोल (1 ग्रा./ली.) को मिलाकर छिड़काव करें।
3. पहले छिड़काव के पंद्रह दिन बाद जरूरत होने पर प्रोफेनोफॉस (1 मि.लि./ली.) तथा हेक्साकोनाज़ोल (1 ग्रा./ली.) को मिलाकर छिड़काव करने की सिफारिश की गई है।
4. अगर फिर भी आवश्यकता हो, तब फिप्रोनील (1 मि.लि./ली.) तथा प्रापिकोनाज़ोल (1 ग्रा./ली.) को मिलाकर पिछले छिड़काव के पंद्रह दिन बाद छिड़काव करें।
5. रोपाई के 110-115 दिनों तक बाद आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करना चाहिए। प्याज निकालने के 10 दिन पहले सिंचाई बंद कर देना चाहिए।
ब. रबी प्याज की रोपाई के लिए
जिन्होंने अभी तक पौध की रोपाई नहीं की है उन्हें अब 45-50 दिन पुराने पौध की रोपाई कर लेना चाहिए।
1. खेत में हल से जुताई करनी चाहिए ताकि पिछली फसल के बचे अवशेष एवं पत्थर हट जाए और ढेले टूटकर मिटटी भुरभुरी हो जाए।
2. सड़ी हुए गोबर की खाद 15 ट./ हे. या मुर्गी खाद 7.5 ट./हे. सा केंचूए की खाद 7.5 ट./ हे. आखिरी जुताई के समय डालना चाहिए।
3. चौड़ी उठी हुई क्यारियां जिसकी ऊंचाई 15 से.मी. और चौडाई 120 से. मी. हो, 45 से.मी नाली की तैयार करनी चाहिए। नाली से अतिरिक्त जल बाहर निकाला जा सकता है जिससे काला धब्बा (एन्थ्राक्नोज) रोग के प्रकोप को कम करने में मदद होगी। यह तकनीक टपक और फव्वारा सिंचाई के लिए उपयुक्त है।
4. टपक सिंचाई के लिए हर चौड़ी उठी हुई क्यारी में 60 से.मी. की दूरी पर दो टपक लेटरल नालियां (16 मि.मी. आकार) अंतर्निहित उत्सर्जकों के साथ होनी चाहिए। दो अंतर्निहित उत्सर्जकों के बीच की दूरी 30-50 से.मी. और प्रवाह की दर 4 ली./घंटा होनी चाहिए।
5. फव्वारा सिंचाई के लिए दो लेटरल (20 मि.मी.) के बीच की दूरी 6 मी. और निर्वहन दर 135 ली./ घंटा होनी चाहिए।
6. रासायनिक उर्वरक 110 कि.ग्रा. नत्रजन, 40 कि.ग्रा. फॉस्फोरस और 60 कि.ग्रा. पोटाश की दर से ड़ालने की जरूरत होती है। अगर पहले से गंधक स्तर 25 कि.ग्रा./ हे. से उपर है, तब 20 कि.ग्रा./हे. और यदि यह 20 कि.ग्रा./हे. से नीचे है, तब 30 कि.ग्रा./हे. गंधक का इस्तेमाल करें।
7. नत्रजन 40 कि.ग्रा. की दर से तथा फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के समय देनी चाहिए।
8. यदि प्याज के लिए टपक सिंचाई प्रणाली का प्रयोग किया गया है, तब 40 कि.ग्रा. नत्रजन रोपाई के समय आधारीय मात्रा के रूप में और शेष नत्रजन का उपयोग छह भागों में, रोपाई के 60 दिनों बाद तक 10 दिनों के अंतराल पर टपक सिंचाई के माध्यम से किया जाना चाहिए।
9. जैविक उर्वरक ऐजोस्पाइरिलियम और फॉस्फोरस घोलनेवाले जीवाणु दोनों की 5 कि.ग्रा./ हे की दर से आधारीय मात्रा के रूप में अकार्बनिक उर्वरकों के साथ ड़ालने की सिफारिश की गई है।
10. खरपतवार नियंत्रण के लिए ऑक्सिफ्लोरोफेन 23.5% इसी (1.5 – 2 मि.लि./ली.) पेंडीमिथालीन 30% इसी (3.5-4 मि.लि./ली.) का इस्तेमाल रोपाई से पहले या रोपाई के समय करना चाहिए, तथा फिर रोपाई के 40-60 दिनों के बाद एक बार हाथ से निराई करनी चाहिए।
11. रोपाई के लिए पौध का चयन करते समय उचित ध्यान रखना चाहिए। कम और अधिक आयु की पौध रोपाई के लिए नहीं लेनी चाहिए। रोपाई के समय पौध के शीर्ष का एक तिहाई हिस्सा काट देना चाहिए।
12. पौध की रोपाई पंक्तियों के बीच 15 से.मी. और पौधों के बीच 10 से.मी. अंतर रखकर करनी चाहिए।
13. फफूंदी रोगों के प्रकोप को कम करने के लिए पौध की जड़ों को कार्बेंडाज़िम घोल (0.10%) में दो घंटे डूबोने के बाद रोपित किया जाना चाहिए।
14. रोपाई के समय तथा रोपाई के तीन दिन बाद सिंचाई करें ताकि पौध अच्छी तरहस्थापित हो सके। इसके बाद आवश्यकता के अनुसार सिंचाई की जानी चाहिए।
15. रोपाई के 30 दिन बाद 35 कि.ग्रा./ हे. नत्रजन दिया जाए।
16. रोपाई के 45 दिन बाद फिर 35 कि.ग्रा./ हे नत्रजन देने की सिफारिश की गई है।
17. रोग एवं कीट के रोकथाम के लिए आवश्यकता के अनुसार कार्बोसल्फान (2 मि.लि./ली.) तथा ट्राईसायक्लोज़ोल (1 ग्रा./ली.) की सिफारिश की गई है।
18. पहले छिड़काव के पंद्रह दिन बाद जरूरत होने पर प्रोफेनोफॉस (1 मि.लि./ली.) तथा हेक्साकोनाज़ोल (1 ग्रा./ली.) को मिलाकर छिड़काव करने की सिफारिश की गई है।
19. अगर फिर भी आवश्यकता हो तब फिप्रोनील (1 मि.लि./ली.) तथा प्रापिकोनाज़ोल (1 ग्रा./ली.) को मिलाकर पिछले छिड़काव के पंद्रह दिन बाद छिड़काव किया जा सकता है।
20. रोपाई के 45, 60 एवं 75 दिनों के बाद पत्तों पर 5 ग्रा./ली. की मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्वों के मिश्रण के छिड़काव की सिफारिश की गई है।
स. लहसुन की खड़ी फसल के लिए
1. रोपाई के 30,45 एवं 60 दिनों बाद पत्तों पर 5 ग्रा./ली. की मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्वों के मिश्रण के छिड़काव की सिफारिश की गई है।
2. रोग एवं कीट प्रंबधन के लिए कार्बोसल्फान (2 मि.लि./ली.) तथा ट्राईसायक्लोज़ोल (1 ग्रा./ली.) को मिलाकर आवश्यकता के अनुसार छिड़काव करने की सिफारिश की गई है।
3. पहले छिड़काव के पंद्रह दिन बाद जरूरत होने पर प्रोफेनोफॉस (1 मि.लि./ली.) तथा हेक्साकोनाज़ोल (1 ग्रा./ली.) को मिलाकर छिड़काव करें।
4. अगर फिर भी आवश्यकता हो, तब फिप्रोनील (1 मि.लि./ली.) तथा प्रोपिकोनाज़ोल (1 ग्रा./ली.) को मिलाकर पिछले छिड़काव के पंद्रह दिन बाद छिड़काव किया जा सकता है।
5. रोपण के 30 दिन बाद 25 कि.ग्रा./हे. नत्रजन दिया जाए।
6. रोपण के 45 दिन बाद फिर 25 कि.ग्रा./हे. नत्रजन देने की सिफारिश की गई है।
7. लाल मकड़ी घुन का प्रकोप दिखाई देने पर मौलिक गंधक (2 ग्रा./ली.) याडायकोफॉल (2 मि.लि./ली.) का पत्तों पर छिड़काव करें।
8. रोपण के 110-115 दिन तक फसल की सिंचाई आवश्यकता के अनुसार की जानी चाहिए।
ड. बीज उत्पादन हेतु प्याज की खड़ी फसल के लिए
1. रोपण के 40-60 दिन बाद हाथों से खरपतवार को निकालना चाहिए।
2. रोपण के पंद्रह दिन बाद आवश्यकता के अनुसार प्रोफेनोफॉस (1 मि.लि./ली.) तथा मैन्कोज़ेब (1 ग्रा./ली.) को मिलाकर छिड़कने की सिफारिश की गई है।
3. पहले छिड़काव के पंद्रह दिन बाद यदि जरूरी हो, तब प्रोफेनोफॉस(1ग्रा./ली.) तथा मैन्कोज़ेब (1 ग्रा./ली.) को मिलाकर छिड़काव करें।
4. अगर फिर भी आवश्यकता हो, तब फिप्रोनील (1 मि.लि./ली.) तथा प्रापिकोनाज़ोल(1 ग्रा./ली.) को मिलाकर पिछले छिड़काव के पंद्रह दिन बाद छिड़काव करें।
5. रोपण के 30 दिन बाद 30 कि.ग्रा./हे. की दर से नत्रजन देने की सिफारिश की गई है।
6. रोपण के 45 दिन बाद फिर 30 कि.ग्रा./हे. की दर से नत्रजन देने की सिफारिश की गई है।
7. रोपण के 80 दिन बाद कीटनाशक का इस्तेमाल न करें, क्योंकि सामान्यत: उस समय तक फूल आना शुरू हो जाता है। फूल आने के बाद कीटनाशक/ फफुंदनाशक का छिड़काव करना परागण के लिए हानिकारक है।
8. आवश्यकता के अनुसार फसल में सिंचाई करनी चाहिए।
टिप्पणी: कार्बोसल्फान, प्रोफेनोफॉस, फिप्रोनील एवं मिथोमिल का प्रयोग थ्रिप्स दवारा फसलों पर नुकसान के लक्षण दिखाई देने पर ही करें। मैन्कोज़ेब, हेक्साकोनाज़ोल, प्रापिकोनाज़ोल, ट्राईसायक्लोज़ोल का प्रयोग रोग के लक्षण दिखाई देने पर ही करें।