सूखे सलाहके लिए
सूखा/कम बारिश में प्याज प्रबंधन
प्याज में सिर्फ खरीफ फसल (20% क्षेत्र) वर्षा पर निर्भर है। रबी प्याज, जो की मुख्य फसल है (60% क्षेत्र) और पछेती खरीफ प्याज (20% क्षेत्र) सिंचित फसलों के रूप में उगाए जाते हैं। इस प्रकार, सूखा/वर्षा की कमी मुख्य रूप से खरीफ फसल के लिए प्रासंगिक है। प्याज की खरीफ फसल मुख्य रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और राजस्थान के कुछ भागों में उगाई जाती है। प्या.ल.अनु.नि. निम्नलिखित तरीकों से नीचे सूचीबद्ध स्थितियों में प्याज की फसल का प्रबंधन करने के लिए सुझाव देता है।
अ. यदि मानसून आने में 15 दिनों की देरी हो
इसका खरीफ प्याज पर ज्यादा असर नहीं होता क्योंकि फसल को जुलाई से अगस्त तक प्रत्यारोपित किया जाता है। नर्सरी स्थापना बारिश में मुश्किल है, इसलिए जब मानसून आने में देरी होती है तब नर्सरी स्थापना आसान हो जाता है। इस स्थिति के लिए निन्मलिखित सुझाव दिए जाते हैं।
1.व्यापक अनुकूलन क्षमता वाली किस्में जैसे (खरीफ और पछेती खरीफ दोनों के लिए उपयुक्त) भीमा सुपर, भीमा राज, भीमा रेड, भीमा शुभ्रा एग्रीफाउंड डार्क रेड, अर्का कल्याण,अर्का प्रगति, बसवंत 780 और फुले समर्थ लगाई जा सकती हैं।
2.पौधशाला जून के दूसरे सप्ताह में लगाई जा सकती है जिससे 35-50 दिनों की पौध प्रत्यारोपित की जा सके।
3.टपक और फव्वारा सिंचाई प्रणाली के साथ उठे हुए सतह पर पौध उगाएँ ताकि विवेकपूर्ण तरीके से सिंचाई के पानी का उपयोग किया जा सके। यदी टपक सिंचाई सुविधा उपलब्ध नहीं है, तब फव्वारे से पानी के छिड़काव द्वारा सिंचाई की जा सकती है।
4.न्यूनतम 3-4 सिंचाई पौधशाला में दिए जाने की जरूरत है।
5.पौध को आंशिक छाया प्रदान करने वाले जाल द्वारा संरक्षित किया जाना चाहिए।
6.वाष्पीकरण कम करने के लिए बीज अंकुरण तक गीली घास (धान के पुआल) का प्रयोग किया जाना चाहिए।
7. अच्छी तरह विघटित कार्बनिक खाद 0.5 ट./ 1000 वर्ग मीटर डाला जाए।
8. अच्छी पौध का विकास नही होने की स्थिति में, पानी में घुलनशील एनपीके उर्वरक (19:19:19 एनपीके 5 ग्रा./लि.) का पत्तों पर छिड़काव से वे जल्दी ठीक हो जाते हैं।
ब. यदि मानसून 30 दिनों की देरी से आए
1.उपर लिखित विधियों का पालन किया जाना चाहिए।
2. अन्य विकल्प है टपक या फव्वारा सिंचाई का प्रबंधन कर उठे हुए सतह पर प्याज बीज की सीधी बोवाई (बीज दर 8-9 कि.ग्रा./ हे.) जिससे फसल, पौध प्रत्यारोपित फसल की तुलना में 1 महीने पहले परिपक्व हो जाती है।
3. कन्दिकायें अगर उपलब्ध हों तब उनका उपयोग खरीफ की फसल के लिए किया जाए क्योंकि इनके द्वारा उगाई फसल, पौध प्रत्यारोपित फसल की तुलना में 45 दिनों पहले परिपक्व होती है।
क. वनस्पति चरण में कम वर्षा
तीन से चार बार सिंचाई सक्रिय वनस्पति विकास के लिए आवश्यक है जो कि मिट्टी के प्रकार के आधार पर विभिन्न चरणों में जैसे स्थापना चरण (रोपन के 10-20 दिनों के बाद), सक्रिय वनस्पति विकास चरण (रोपन के 30-40 दिनों के बाद) और कन्द स्थापना चरण (रोपन के 40-50 दिनों बाद) में आवश्यक हैं। इस चरण में बारिश के घाटे से निपटने के लिए निम्नलिखित बातों पर अमल किया जाना चाहिए।
1.टपक सिंचाई के साथ उठी हुई सतह पर फसल उगाई जाए।
2. बारिश के पानी को तालाबों में संरक्षित किया जाना चाहिए जिससे सूखे के दौरान 2-3 सिंचाई की जा सके जिससे जीवन प्रदान करने में मदद मिलेगी। सिंचाई मिट्टी की नमी और फसल की आवश्यकता के अनुसार की जानी चाहिए।
3. वाष्पीकरण के कारण पानी के नुकसान को कम करने के लिए आवश्यकता के अनुसार वाष्पोत्सर्जन विरोधी काओलिनाइट का 5% की दर से छिड़काव करना चाहिए।
4. वाष्पीकरण कम करने के लिए मिट्टी की सतह को धान/गेहूं के भूसे या गीली घास से ढँका जाना चाहिए।
5. फसल विकास ठीक से नहीं होने पर पानी में घुलनशील एनपीके उर्वरक (19:19:19, 5 ग्रा./लि.) का छिड़काव करने से पौधे जल्दी ठीक हो जाते हैं।
6. सक्रिय वनस्पति विकास चरण के दौरान पौधों को जल्दी ठीक करने के लिए सल्फर 85% डब्ल्यू पी का 1.5-2.0 ग्रा./ लि. की दर से पत्तों पर छिड़काव करना चाहिए।
7. बेहतर फसल के लिए रोपाई के 30, 45 और 60 दिनों के बाद जस्ता, मैगनीज, लोहा, कॉपर, बोरोन युक्त पोषक मिश्रण का पत्तों पर छिड़काव (5 मि.ग्रा./लि.) करना चाहिए।
8. 20 ट./हे. सड़ी हुई गोबर की खाद या उसके बराबर अच्छी तरह विघटित अन्य जैविक खाद रोपाई से 15-30 दिनों पहले दी जानी चाहिए।
9. शुष्क मौसम के दौरान, थ्रिप्स कीड़ों की जनसंख्या अगर आर्थिक दहलीज स्तर (30 थ्रिप्स/पौधा) के ऊपर हो तो इसके प्रभावी प्रबंधन के लिए प्रोफेनोकॉस 1 मि.लि./लि. या कारबोसल्फान 2 मि.लि./लि. या फाइब्रोनील 1.5 मि.लि./लि. का छिड़काव करना चाहिए।
ड. अंतिम स्थिति में सूखा
1.रोपाई के 85 दिनों के बाद एक सिंचाई पर्याप्त है। यह जमा किए गए वर्षा जल का उपयोग कर टपक सिंचाई द्वारा प्रदान किया जा सकता है।
नोटः ऊपर दी हुई परामर्श को पानी की कमी होने पर पछेती खरीफ और रबी फसलों के लिए भी अपनाया जा सकता है।