बीज उत्पादन
बीज फसल उत्पादन की बुनियादी इकाई है और पर्यावरण तथा सांस्कृतिक कारको की तुलना में अधिक से अधिक योगदान है भारत कोलगभग 11.73 लाख हेक्टअर क्षेत्र को पूरा करने के लिए लगभग 9400 टन प्याज के बीज की सालाना आवश्यकता हैपूरे बीज की मात्रा कालगभग 54% सगठित क्षेत्र पूरा करते है। तथा बचा हुआ किसानो के दवारा बिना वैज्ञानिक विधि का प्रयोग करते हुए किया जाता है।
1. बीज उत्पादन की विधि
क. बीज से बीज की विधि
ख. रोपाई के बाद पौध को सर्दियों तक खेत में रखते हैं। बल्ब को निकाला नहीं जाता है तथा उसी खेत में फूल आने देते हैं। इस विधि को प्राथमिकता नही देते क्योंकि इसमें अन्य प्रकार के बीज, तथा रोगी, तथा बहु केंद्रीय कंद का परीक्षण हेतू अवसर प्रदान नही हो पाता। इस कारण इस विधि में अनुवंशिक शुध्दता खराब होती है। जबकि बीज से बीज की विधि से बीज के उत्पादन का खर्चा प्याज कंद से बीज विधि की तुलना में कम है परन्तु हम इस विधि को वरी
ग. कंद से बीज की विधि
पहले मौसम में प्याज के कंद का उत्पादन किया जाता है।जो परिपक्व होने के बाद उखाडा जाता है, और जो सत्य प्रकार के कंद होते है उन्हे छाटा जाता है तथा संग्रहित किया जाता है।रबी तथा पछेती खरीफ किस्मो के कंद को संग्रहित कर अगले मौसम में तथा खरीफ प्रजाति को 15-30 दिन संग्रहण करके लगाते है।प्याज का 1/3 भाग काट कर उसके एक्सिस आफ ग्रोइंग स्टेट का पता लगाते है। तथा सामान्यतः सिंगल सेंटरड बल्ब (एक केंद्र कंद) का चयन करते है।और उसे 1 ग्राम / लीटर कार्बेन्डाझीम तथा कार्बोसल्फान 1 मिलि. / लीटर पानी में आधा घंटा उपचारित करते है।इस विधि में मुख्य रूप से कंद की गुणवत्ता तथा अवांछनीय कंदों के आधार पर चयन करने का अवसर प्राप्त होता है एसलिए इस पध्द
(2) रोपण सामग्री का चयन : किस्मों के अनुसार हर समय प्याज का रंग व आकार देख कर चुनाव करना चाहिए प्याज मध्यम से
(3) आनुवंशिक शुद्धाता के लिए विलगीकरण का पालन :
दूषितता के कारक न्यूनतम दूरी (मीटर)
मातृकंद का उत्पादन बीजोत्पादन अवस्था
आधारभूत प्रमाणित आधारभूत प्रमाणित
अन्य किस्मों का क्षेत्र 5 5 1000 500
उसी क़िस्म का क्षेत्र 5 5 1000 500
(प्रमाणपत्र के लिएआवश्यक क़िस्म की शुद्धता रखने हेतु)
जलवायु और मौसम :
प्याज में फूल आना तापमान एक संवेदनशील घटना है। लघु दिन उष्णदेशीय प्रकार के प्याज के लिए कम तापमान (25 अंश से दिन व 10-15 अंश से रात), लंबे दिन शीतोष्ण प्रकार के प्याज के लिए बहुत कम (0-25 अंश सेल्सिअस) तापमान चाहिए। उष्णदेशीय प्रकार के लिए ॲक्टूबर-नवम्बर में लगाना सबसे अच्छा समय हैसिफारिश कि गई विधियों के अनुसार, रबी फसल के मातृ कंदों का उत्पादन करके ॲक्टूबर तक भंडारित किया जाना चाहिए। कंद को 25-30 अंश सेल्सिअस तापमान तथा 65-71% सापेक्ष आर्द्रता में अच्छी तरह से हवादार भंडारण गृह में रखना चाहिए। आम तौर पर अनुकूल तापमान पर भंडारित किए गए कंदों से विकसित पौधे जल्दी परिपक्व होकर उनमें फूल आते है और उनसे ज्यादा
रोपण अंतर
सिंचाई के तरीके :
पानी की आवश्यक मात्रा (हे.सेमी.) पानी की बचत (%)
भूतल 90 -
ड्रिप 67.5 33.3
स्प्रिंकलर (फुवार तंत्र) सिफारिश नही की जाती है क्योंकि इससे परागण प्रभावित होता है।
उर्वरक :
एफवाईएम (सड़े गोबर की खाद)25 टन/हे., एन. पी. के. 100:50:50 किग्रा./हे क्रमश: की जरूरत होती है। एनपीके 50:50:50 किग्रा./हे रोपण के समय तथा उर्वरित नाइट्रोजन 2 भागों में, एक रोपण के 30 दिनों बाद और दुसरा 45-60 दिनों पश्चात देना चाहिए। रोपण के 60 दिनों के बाद मल्टि पोटेशियम (0:0:50) का एक छिड़काव करना चाहिए।
छटाई (अवांधित पोधों को निकालना) : खेत की नियमित रूप से निगरानी करना चाहिए। पीले एवं कमजोर पौधों को फूल आने से पहले हटा देना चाहिए। अलग प्रकार से बढ़वार वाले पौधे दिखाई पड़े तो फूल आने से पहले नष्ट कर देना चाहिए। एस्टर पिले और स्टेमफाइलियम झुलसा से प्रभावित पौधों को बीज निकालने से पहले हटा देना चाहिए।
खरपतवार प्रबंधन : कंदों के रोपण के बाद ऑक्सिफ्लुरफेन 1.5 मिली/लि. का छिड़काव और रोपण के 45 से 60 दिनों के पश्चात एक निराई गुडाई करना चाहिए।
सुखाना और गहाना : फूलों को खूली धूप में बीज से 6 से 7 प्रतिशत नमीं रहने तर्क सुखाना चाहिए। उसके के बाद रोलिंग या थ्रसिंग मशीन या दोनो के द्वारा बीज निकालना चाहिए।
औसत बीज उपज : 500-800 किग्रा/ हे. बीज अच्छे प्रबंधन और उपयुक्त जलवायु परिस्थितियों में 1000 से 1200 किग्रा बीज/हे प्राप्त किया जा सकता है।
बीज पैकिंग : सही तरह से सुखाने के बाद बीज 400 गेज वाली पाली बैग में पैक करना चाहिए।
बीज ग्राम संकल्पना : बीज की लगभग 9400 टन की आवश्यकता का सिर्फ 40 प्रतिशत जारी किस्मों का उपयोग कर विलगीकरण के नियमों का पालन करते हुए संघटित क्षेत्रों द्वारा उत्पादित किया जाता है। बाकी का बीज किसानों द्वारा विलगीकरण के उचित मानदंडों का पालन किए बगैर उत्पादित किया जाता है। इसके अलावा, किसान खुद के जीनोटाइप जो कई खामियों से ग्रस्त होते है, का उपयोग करते है। इस्टमत विलगीकरण दूरी के साथ उत्पादन न लेने से उनके बीजों में मिश्रण तथा गुणवत्ता में कमी होती है। इसी वजह से नई किस्मों का प्रसार तेजी से नहीं हो रहा है। एक गांव के एक परिसर में एक किस्म के बीज उत्पादित करने की जरूरत है। इसे बीज ग्राम संकल्पना कहते है। इससे अच्छी गुणवत्ता का बीज आवश्यक मात्रा में उत्पादित किया जा सकता है। ऐसा करने से गांव अपना खुद का ब्रांड विपणन के लिए तैयार कर सकता है।लहसुन के पौधों में पुष्पन नहीं होता है। यह वानस्पतिक तरिके से उगाया जाता है। लहसुन की व्यावसायिक रूप से विकसित किस्मों से बड़े आकार के बड़े कंदों का चुनाव किया जा सकता है।